_आर्य समाज ने मनाया स्वामी दयानंद का जन्मोत्सव

 Deepakshi Media Farrukhbad 

आर्य समाज ने मनाया स्वामी दयानंद का  जन्मोत्सव*




 फर्रुखाबाद: वेद प्रचार मण्डल आर्यावर्त्त के तत्वावधान में भारतीय नवजागरण के पुरोधा व आर्य समाज के संस्थापक महान समाज सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती का 197 वां जन्मोत्सव आर्य समाज मंदिर लोहाई रोड में हर्षोल्लास  पूर्वक मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ सामूहिक यज्ञ के द्वारा किया गया आर्य समाज के पुरोहित प. हरिओम शास्त्री ने वैदिक मंत्रों से यज्ञ सम्पन्न कराया। कार्यक्रम की अध्यक्षता जिला आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान आचार्य चंद्रदेव शास्त्री ने की। उन्होंने कहा कि अठारवीं सदी में महर्षि दयानंद के आने से पूर्व भारत धार्मिक,मानसिक व राजनीतिक रूप से गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। वे पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने भारत को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने का पहला संखनाद किया  उन्होंने ही सर्व प्रथम स्वराज का नारा दिया और कहा कि 'भारत केवल भारतीयों का है' । उनके विचारों से प्रेरणा लेकर हजारों नौजवान स्वतंत्रता के आंदोलन में सक्रिय हो गए। उन्होंने भारत की गुलामी का कारण जड़ पूजा और पाखण्ड को बताया और कहा कि इसको समाप्त किये बिना लोगों की मानसिक गुलामी नहीं जा सकती। उन्होंने सती प्रथा,बालविवाह जैसी सामाजिक कुरीति का विरोध कर इसे समाप्त करने का आवाहन किया साथ ही विधवा पुनर्विवाह शुरू कराकर विधवाओं उद्धार हेतु सराहनीय उपकार किया। वे एकेश्वरवाद के पक्षधर थे तथा उनका मानना था कि हिंदुओं में व्याप्त अनेक ईस्वरवाद तथा वेदों के उपदेश को भूलना ही इनके धार्मिक पतन का कारण हैं । उन्होंने विभिन्न मतमतान्तरों के लोगों से आवाहन किया कि आओ एक जगह वैठकर जो सत्य हो उसको सब मिलकर स्वीकार करें उसी वैदिक मत को मानकर उसका अनुशरण करें। उन्होंने कहा कि वेद ईस्वर की वाणी है जो सब मनुष्यों के कल्याण के लिए परमात्मा ने प्रदान की है महाभारत काल के बाद नाना प्रकार के मतमतान्तरों के कारण लोग वेद ज्ञान को भूलकर अंधकार में फंस गए। स्वामी जी ने संसार के कल्याण के लिए नारा दिया कि ' वेदों की ओर लौटो' वेद मार्ग पर चलकर ही आज विश्व मे शांति स्थापित हो सकती है। आर्य समाज के मंत्री डॉ हरिदत्त द्विवेदी ने सभी आगंतुकों का आभार व्यक्त कर वैदिक साहित्य भेंट कर सम्मानित किया। कार्यक्रम का संचालन अधिवक्ता संदीप आर्य ने किया उन्होनें कहा कि स्वामी दयानंद  ऐसे निर्भीक सन्यासी थे जो बिना किसी भय के अकाट्य तथ्यों द्वारा अपनी बात रखते थे उनके आगे बड़े से बड़े पाखंडी की बोलती बंद हो जाती थी वे एक देश एक वेश व एक भाषा के पक्षधर थे उनका मत था कि इसी के द्वारा देश मे एकता संभव है। वे समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की वात करते थे। उन्होंने समाज मे व्याप्त छुआ छूत का पुरजोर विरोध किया, वे वैदिक संस्कृति और संस्कृत के सबसे बड़े रक्षक थे। उन्होंने स्त्रियों को शिक्षा तथा वेद पढ़ने का अधिकार दिलाकर नारी उद्धार का महान कार्य किया आज भी आर्य समाज के हजारों शैक्षिक संस्थान व कन्या गुरुकुल स्त्री शिक्षा में सेवारत हैं। उदिता आर्या ने मधुर भजनों के माध्यम से अपने श्रद्धासुमन अर्पण किये। उनके गीत " देखकर देश के हालात सभी एक दयानंद जरूरी है अभी" पर श्रोतागण भावविभोर हो गए। वहीं राजेपुर क्षेत्र में आचार्य कमलकिशोर अग्निहोत्री के आवास पर स्वामी दयानंद जन्मोत्सव पर बच्चों की निबन्ध व सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें छात्र छात्राओं ने प्रतिभाग कर पुरस्कार प्राप्त किये। कार्यक्रम में पीयूष शर्मा,रघुवीर दत्त शर्मा, प्रशांत आर्य, उदयराज आर्य,समरपाल सिंह, रेनू आर्या आदि उपस्थित रहे।

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